VIRENDER SEHWAG: सर्वकालिन क्रिकेट इतिहास (ALL TIME CRICKET) में सबसे बड़े एंटरटेनर और फैंस के सबसे चहेते खिलाड़ी वीरेन्द्र सहवाग(VIRENDER SEHWAG) का नाम एक अलग ही अहसास देता है। आज भले ही इंटरनेशनल क्रिकेट से दूर हुए एक दशक हो चुका हो, लेकिन वीरेन्द्र सहवाग का रूतबा ही कुछ ऐसा रहा है कि आज भी मैदान में उनकी एक झलक पाने को लाखों फैंस जुट सकते हैं।
टेस्ट क्रिकेट(TEST CRICKET) हो या वनडे क्रिकेट(ODI CRICKET) या फिर टी20 फॉर्मेट(T20 CRICKET) हो, जहां पहली ही गेंद पर बड़ा शॉट खेलने की हिम्मत कोई दिखा सकता है तो वो हैं इकलौते वीरू… जेन मास्टर(ZEN MASTER) के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले वीरेन्द्र सहवाग ने क्रिकेट के तीनों ही फॉर्मेट में सेंचुरी, डबल सेंचुरी या ट्रिपल सेंचुरी को पूरा करने के लिए कभी भी छक्का लगाने से घरबराएं नहीं। कईं बार उन्होंने नाइनटीज के बाद बाउन्ड्री से ही सेंचुरी लगाने की उपलब्धि हासिल की है।
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वीरेन्द्र सहवाग अपने चिर-परिचित अंदाज से कईं बार शतक, दोहरा शतक और तिहरा शतक भी चूके हैं, लेकिन उन्होंने अपना ये अंदाज कभी नहीं छोड़ा। आखिर में क्रिकेट पंडित से लेकर प्रशंसक तक हैरान रहते थे, कि आखिर कोई बैट्समैन अपनी निजी उपलब्धि के करीब जाकर भी कैसे इतने बेखौफ अंदाज में बैटिंग कर सकता है। आखिर कैसे नर्वस नाइनटीज में आउट होने के डर को दूर रख छक्का लगाने की हिम्मत जुटा सकता है।
अब तक तो वीरेन्द्र सहवाग का ये स्टाइल फैंस ने खूब पसंद किया, लेकिन उनकी ये मानसिकता पहेली बनी हुई थी, जिसे खुद वीरू ने ही सुलझा दिया है। संन्यास लेने का सालों बाद वीरेन्द्र सहवाग ने अपने इस बैटिंग स्टाइल को लेकर खुलासा किया है, जिसमें उन्होंने बताया कि क्यों वो सेंचुरी हो या डबल सेंचुरी या ट्रिपल सेंचुरी, जिसे पूरा करने के लिए छक्का लगाने की सोचते थे।
मैं विपक्षी टीम को नहीं दे सकता आउट करने के लिए 10 गेंद का वक्त
न्यूज 18 नेटवर्क के साथ उनके खास कार्यक्रम न्यूज 18 इंडिया में चौपाल पर बात करते हुए वीरेन्द्र सहवाग ने कहा कि, “मैं टेनिस बॉल क्रिकेट खेलता था, जहां मेरी मानसिकता बाउंड्री के माध्यम से ज्यादा रन बनाने की थी। मैं इंटरनेशनल क्रिकेट में एक ही पैटर्न के साथ खेला करता था और यह देखता था कि मुझे शतक बनाने के लिए कितनी बाउंड्री की जरूरत है।“
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उन्होंने आगे कहा कि, “अगर मैं 90 पर हूं और 100 तक पहुंचने के लिए अगर मैं 10 बॉल खेलता हूं तो विपक्षी टीम के पास मुझे आउट करने के लिए भी 10 बॉल होंगी, इसलिए मैं बाउंड्री लेने का विकल्प चुनता था और फिर मुझे ट्रिपल फिगर-मार्क तक पहुंचने से रोकने के लिए उनके पास केवल दो बॉल बची रहती थीं। इस तरह रिस्क का परसेंटटेज रेशो 100 से 20 तक गिर जाता था।
”
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